ऑय 1 न्यूज़ 26 जनवरी 2019 (रिंकी कचारी) आधुनिक भारत के निर्माण में कई महापुरुषों ने अपना जीवन न्योछावर कर दिया. 70वें गणतंत्र दिवस के मौके पर आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 26 महान चेहरों के बारे में बता रहे हैं. दिलचस्प यह है कि इनके बारे में 26 दिग्गज लोगों ने लिखा है. इनमें पहला नाम है महात्मा गांधी का.
1. महात्मा गांधी
महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध के बाद सबसे महान भारतीय थे. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद 1 अगस्त, 1920 को पहला राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह छेड़कर आजादी के संघर्ष में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया. सत्याग्रह में उन्होंने लाखों अशिक्षित किसानों और कुशाग्र बुद्धिजीवियों, सबको इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे उनके इस विश्वास का अनुसरण करें कि भयमुक्त तपस्या की वजह से एक साल बाद देश को ब्रिटिश औपनिवेशिक आतंक से या तो आजादी मिल जाएगी या फिर स्वराज. भले ही यह सब उस तेजी से तो मुमकिन न हुआ हो, लेकिन गांधी ने सत्य और अहिंसा में अपने भरोसे को कभी डिगने नहीं दिया. सिखों की लाशों से लदी खून से सनी ट्रेनें अमृतसर स्टेशन पर पहुंचती थीं तो मुसलमानों की लाशों से लदी ट्रेन लाहौर स्टेशन पर. गांधी विलाप करते थे कि ”क्या आजादी मिलने के बाद हम सब वहशी हो गए हैं? यह कितना शर्मनाक है.”
2. आंबेडकर
आंबेडकर का भारत को शहरी, औद्योगिक समाज में बदलने का लक्ष्य उन्हें आधुनिक यूरोप और अमेरिका के निर्माताओं के समकक्ष रखता है. उनके हिसाब से ग्रामीण भारत नंगे बदन वाला एक आदमी तो शहरी भारत कपड़े पहने व्यक्ति है. महात्मा गांधी सहित उनके ज्यादातर समकालीन गांवों को आदर्श मानते थे. आंबेडकर के ये विचार बहुत प्रसिद्ध हैं, ”गांव क्या है, स्थानीयता का हौज, अज्ञानता की एक मांद और एक संकीर्ण मानसिकता?”
3. सुभाषचंद्र बोस
अपने जीवनकाल में ही सुभाषचंद्र बोस किंवदंती और मौत के बाद मिथक बन गए. विडंबना यह कि उनकी तारीफ के लिए असल में इतनी चीजें हैं कि फंतासी की जरूरत ही नहीं रह जाती. बोस ने सिंगापुर के चेट्टियार मंदिर में एक धार्मिक समारोह में तब तक शामिल होने से इनकार किया जब तक कि वहां के पुजारी सभी जातियों और समुदाय के लोगों को शामिल करने को तैयार नहीं हो गए. मूर ने बोस की किताब द इंडियन स्ट्रगल पढ़ी थी लेकिन वे इसे भारतीय मीन काम्फ करार देते हैं, ”यह ज्यादा उदार और सुसंस्कृत है, या कहना होगा कि थोड़ा कम अश्लील है. लेकिन सांचा स्पष्ट है और जीवन दृष्टि एक जैसी…इसमें कुछ भी खांटी भारतीय नहीं.”इनके बारे में और पढ़ें… 4. जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू को अगर बढिय़ा तरीके से कोई समझ पाया था तो वे थे महात्मा गांधी. चतुर संत और उससे भी होशियार बनिएके तौर पर गांधी महसूस कर चुके थे कि राष्ट्रवादी हीरो के तौर पर उपलब्ध नेताओं में से कोई भी उनका उत्तराधिकारी नहीं हो सकता. बहुतेरे नेताओं ने इस भूमिका के लिए अपनी ही सिफारिश की लेकिन सबमें उस काबिलियत का अभाव था. गांधी को इन सबका दोयम लगना स्वाभाविक था. नेहरू आधुनिकता को उसकी परिभाषा से भी आगे लेकर गए. उन्होंने सहजता को ज्यादा महत्व दिया. वह मिस्टर मॉडर्न थे. यदि आधुनिकता के लिए कोई सदाबहार व्यक्ति था तो वे जवाहरलाल नेहरू ही थे.
5. फौलाद के बने नेता, सरदार वल्लभभाई पटेल
पटेल का बेहतरीन समय उस वक्त आया, जब वे 550 से भी ज्यादा बिखरी हुई रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने के काम में लगे. अपनी रणनीति, दृढ़निश्चय और ताकत की वजह से वे इस असंभव-से कार्य को संभव कर पाए और इसमें उन्हें सक्षम मदद मिली वी.पी. मेनन की जिन्हें लॉर्ड माउंटबेटन ने उनका साथ देने के लिए लगाया था. लॉर्ड माउंटबेटन ने जब जून 1948 में सरदार से अंतिम विदाई ली तो इसे देखा जा सकता था, दोनों की आंखें नम थीं.
6. एक खामोश ताकत थे लाल बहादुर शास्त्री
लाल बहादुर शास्त्री आजादी के आंदोलन के अलावा सत्ता सही मायने में भारतीयों के हाथ सौंपे जाने का मूर्त रूप थे. वे ऐसी चाबी थे जो किसी भी ताले में लग सकती थी. जब जवाहरलाल नेहरू को दौरा पड़ा, मैंने शास्त्री से कहा कि उन्हें बागडोर संभालने के लिए तैयार रहना चाहिए, पर उन्हें यकीन था कि कतार में आगे इंदिरा ही होंगी. जब वक्त आया, तमाम सियासतदां शास्त्री के इर्दगिर्द जमा हो गए, क्योंकि वे किसी को नाराज नहीं करते थे. 1966 के ताशकंद समझौते के वक्त शास्त्री पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खान से मिले और इस पर अड़ गए कि अंतिम समझौते में शामिल होना चाहिए कि भविष्य में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच विवाद का निबटारा हथियारों का इस्तेमाल किए बगैर शांति से किया जाएगा.
7. मुकम्मल गैर-कांग्रेसी नेता राम मनोहर लोहिया
आज जब हम हिंदुस्तानी राष्ट्रवाद को अगवा करने की सबसे धूर्त कोशिशों से दो-चार हैं, राम मनोहर लोहिया की सांस्कृतिक सियासत पहले किसी भी वक्त से आज कहीं ज्यादा प्रासंगिक है. लोहिया कहते थे कि ”राजनीति अल्पकालिक धर्म है और धर्म दीर्घकालिक राजनीति है. ” उनका यह सूत्र ऐसे दरवाजे खोल देता है जिनसे सियासत को नए सिरे से गढऩे के लिए हिंदूवाद और दूसरी धार्मिक परंपराओं से ताकत ली जा सकती है.
8. समकालीन मार्क्सवाद के प्रतीक पुरुष ई.एम.एस. नंबूदिरीपाद
ईएम.एस. नम्बूदिरीपाद की तारीफ करने के लिए किसी व्यक्ति को उन दो चुनौतियों के बारे में मालूम होना चाहिए जिससे वे जूझे और जिनका इतिहास में शायद कोई सानी नहीं मिलता. पहली, एक लोकतांत्रिक संस्थागत क्षेत्र में क्रांतिकारी एजेंडे और हिंसक तरीके अपनाने की प्रवृत्ति वाली पार्टी को एकजुट करके उसका नेतृत्व करना.9. जनता के दिलों पर राज करने वाला लोकनायक
परिवर्तन का जयप्रकाश नारायण का विचार राजनैतिक बदलाव तक सीमित नहीं था. उनकी संपूर्ण क्रांति का लक्ष्य तंत्र को बदलना था. वे लोकतांत्रिक तरीकों और मौलिक अधिकारों के सबसे प्रबल समर्थक थे. जननायक जेपी के नेतृत्व में भारत दिग्भ्रमित व्यक्तिवाद से दूर लोकतांत्रिक मूल्यों की सचाइयों पर गया. वे सार्वजनिक मंच के सबसे कुशल भाषणकर्ताओं में से नहीं थे.
10. जाति की राजनीति का मसीहा विश्वनाथ प्रताप सिंह
कुछ लोग वी.पी. सिंह को सामाजिक न्याय का मसीहा मानते थे. वे खुद को भी इसी रोशनी में देखते थे. कई लोग मानते थे कि वे एक शातिर नेता से ज्यादा कुछ नहीं थे क्योंकि उन्होंने अपना अस्तित्व बचाने के लिए बोतल से जिन्न को बाहर तो निकाल दिया लेकिन उसे वापस भीतर नहीं डाल सके.11. सबसे प्रभावशाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
हमारे देश की सरकारों का जो भी रंग और वैचारिक झुकाव रहे, वे सब की सब पलटकर इंदिरा गांधी की ही तरफ देखेंगी. उन्होंने समझदारी के वे मानक स्थापित किए जो किसी भी सत्तारूढ़ पार्टी के चेहरे का हिस्सा होने चाहिए. वे उस दौर में गढ़े गए थे जब उनके अपने अस्तित्व के लिए खासे संकट की घड़ी थी. भारत ने बहुत तरक्की कर ली है और उसका मध्यवर्ग खासा बढ़ गया है. लेकिन करोड़ों लोग अब भी भीषण गरीबी में या फिर भयानक तंगहाली में जीवन गुजार रहे हैं.
12. उदारीकरण के अगुआ डॉ. मनमोहन सिंह
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले 10 साल के दौरान अर्थव्यवस्था दो वैश्विक संकटों को पार कर गई—एक 2008 में और दूसरा 2011 में. और इस दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद लेने की जरूरत नहीं पड़ी और आर्थिक सुस्ती के दो सालों के बावजूद न केवल विकास दर का उनका प्रदर्शन प्रभावशाली रहा बल्कि गरीबी में भी अभूतपूर्व गिरावट आई.
13. राजीव गांधी थोड़े समय का ध्रुव तारा
प्रधानमंत्री के रूप में अपने पूर्ण कार्यकाल की शुरुआत से ही राजीव गांधी ने आम आदमी के लिए ‘जवाबदेह प्रशासन’ को वक्त की जरूरत के रूप में चिन्हित किया. शुरू में ऐसा लगा कि वे मुद्दे के प्रबंधकीय समाधान के हक में हैं, जिसे दो नई पहलों के रूप में देखा जा सकता है—एक तो जब महाराष्ट्र में अहमदनगर के जिला कलेक्टर ने आम आदमी के आवेदनों को लेने और उनके निबटान के लिए एकल खिड़की की व्यवस्था शुरू की, दूसरा उन्होंने शिकायतों के निपटारे के लिए एक व्यवस्था बनाई जिसका आधार यह था कि सप्ताह में एक दिन कलेक्टर अपने वरिष्ठ अफसरों के साथ खुले में एक पेड़ 14. कायापलट करने वाला करिश्माई नेता नरेंद्र मोदी
हरेक चुनावी फतह के साथ यह जाहिर होता जाता है कि भाजपा-आरएसएस ने एक ऐसी चुनावी मशीन तैयार कर ली है जो भयभीत करने वाली है. कांग्रेस अब आधा दर्जन से भी कम राज्यों में सत्ता में रह गई है. इससे पता चलता है कि ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का मोदी-शाह का सपना दूर की कौड़ी नहीं. उनका काम करने का तरीका ऐसा है कि वे किसी भी दूसरी चीज का क्चयाल किए बगैर एक धुन से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते हैं. इसे देखते हुए 2019 में और भी बड़ी कामयाबी की उनकी भूख अब खाम क्चयाली नहीं रह गई है.
15. सी.एन. अन्नादुरई जिसने बदल दिया खेल
जब बढ़त के आंकड़े उनकी सभी उम्मीदों को पार कर गए, तो समूह में स्तब्धकारी चुप्पी छा गई थी. महज 25 वॉट के बल्ब से प्रकाशित एक मामूली घर में छोटे-से रेडियो से चिपके बैठे लोग इतने अभिभूत थे कि वे कोई प्रतिक्रिया भी नहीं कर पा रहे थे. हो सकता है थकान के कारण उद्घोषक के आंकड़े गलत हो गए हों—आधी रात बीत चुकी थी और मतपत्रों की गिनती अभी जारी थी. विधानसभा चुनाव लड़ रही द्रविड़ मुनेत्र कझगम के नेता—अन्नादुरै या अपने समर्थकों के लिए अन्ना, ने यह गौर किया कि जैसे-जैसे परिणाम आने शुरू हुए, हर व्यक्ति भारी उत्तेजना और उत्साहपूर्ण जश्न मना रहा था. लेकिन जैसे ही द्रमुक की बढ़त 60 के पार हो गई, तो अविश्वास और बेचैनी के लक्षण उनके चेहरे पर नजर आने लगे. इसके बाद, अंतिम घोषणा ने द्रमुक के हाथों कांग्रेस पार्टी की पराजय की पुष्टि कर दी. द्रमुक ने 137 सीटों के भारी बहुमत से जीत हासिल की थी, जो 222 सीटों के सदन में दो-तिहाई बहुमत से अधिक थी. 16. एक निर्भीक यात्री लालकृष्ण आडवाणी
अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के किसी अन्य नेता ने इसकी स्थापना में और साथ ही भारतीय राजनीति में उसके त्वरित उत्थान में उतना योगदान नहीं दिया है, जितना कि लालकृष्ण आडवाणी ने. अटल-आडवाणी का दौर 1980 में भाजपा की स्थापना से पहले ही शुरू हो गया था. इसे फरवरी 1968 में भारतीय जनसंघ (भाजपा की पूर्ववर्ती पार्टी) के मुख्य विचारक और संयोजक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमय हत्या के दर्दनाक नतीजे से समझा जा सकता है.
17. लता मंगेशकरः देश की आवाज
लता मंगेशकर का हिंदी फिल्मी गीतों के लिए वही योगदान है जो ग़ालिब का उर्दू अदब के लिए और मकबूल फिदा हुसैन का पेंटिंग के लिए. इस क्षेत्र में काम करने वाले तमाम दिग्गजों में उनका स्थान हमेशा अव्वल रहा है, चाहे वह मोहम्मद रफी हों, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे या उनकी अपनी छोटी बहन आशा भोंसले. वे उन सबसे आगे निकल गईं, एक के बाद एक फिल्मों में हिट गाने गाती रहीं और सात दशक से भी ज्यादा वक्त से भारतीयों को यादगार पल देती रही हैं. वे मदन मोहन के कंपोजीशन की गज़ल थीं और नौशाद के तरानों का गुरूर.18. बल्लेबाजी के हर फन में माहिर
जब सुनील गावसकर अपनी लय में होते थे तो यकीनन दुनिया के सबसे ‘पूर्ण’ बल्लेबाज होते थे, भले ही सबसे मनोरंजक न हों. बल्लेबाजी को लेकर उनका नजरिया बड़ा ही महीन रहता था. वे पिच और सामने गेंदबाज के अनुसार मामूली-सा तकनीकी बदलाव अपनी शैली में करते थे. उनका बुनियादी तरीका यही रहता था कि विपक्षी गेंदबाजों को थका दो और उसके पीछे यह तय विश्वास रहता था कि रन तो अपने आप बनेंगे. उनकी बल्लेबाजी की खूबसूरती अच्छा प्रदर्शन करने की दृढ़ता और अनुशासन के इर्दगिर्द खड़ी थी.
19. श्वेत क्रांति के जनक
वर्ष 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने गुजरात में आणंद का दौरा किया ताकि अमूल की सफलता को खुद अपनी नजरों से देख सकें. उन्होंने वर्गीज कुरियन से आसपास के किसी दुग्ध उत्पादक गांव में सामान्य नागरिक की तरह रात भर ठहरने का इंतजाम करने का अनुरोध किया. वे चाहते थे कि लोगों को उनके पद के बारे में मालूम न चले. कुरियन सहम से गए. वे कैसे किसी प्रधानमंत्री को बगैर किसी सुरक्षा या सहयोग तंत्र के रात भर किसी गांव में ठहरा सकते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री शास्त्री के जोर देने पर बगैर उनकी सुरक्षा जानकारियों का खुलासा किए उन्हें पास के गांव में रात बिताने के लिए छोड़ दिया गया.20. मेट्रोमैन
इलात्तूवैलापिल श्रीधरन अगर सुपरहीरो होते, तो उनका पहले से तैयारशुदा नाम होता ‘मेट्रोमैन’. उन्होंने हिंदुस्तान के बुनियादी ढांचे के एक सबसे कामयाब निर्माता दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) की स्थापना की. वे इतना करामाती काम कर सके, इस पर यकीन नहीं होता, तो इसकी मुख्य वजह यह है कि यह क्षेत्र योजनाओं के खराब क्रियान्वयन और वक्त तथा लागत में बेहिसाब बढ़ोतरी का शिकार रहा है.21. जज्बात का चितेरा
सत्यजित रे की तमाम फिल्मों में कुछ साझा खूबियां हैं जो आम तौर पर मुख्यधारा के हिंदुस्तानी सिनेमा में दिखाई नहीं देतीं. ये सभी फिल्में यथार्थवादी हैं, हालांकि उनके संदर्भ और पृष्ठभूमि बहुत अलग-अलग हैं, जो गांव से लेकर शहरों तक ऐतिहासिक से लेकर समकालीन तक फैली हैं. फिल्म की सिनेमाई बारीकियों पर, खास तौर पर उनके दिखाई और सुनाई देने वाले हिस्सों पर, जिस कदर ध्यान दिया गया है, वह रे के सिनेमा की सबसे ताकतवर खूबियों में से एक है.
22. सुर सम्राज्ञी एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी
वे पहली गायिका थीं जिन्हें भारत रत्न मिला. मैग्सेसे अवार्ड जीतने वाली भी वे पहली थीं और संयुक्त राष्ट्र में अपनी गायकी पेश करने वाली भी. वे पहली और शायद इकलौती थीं जिन्होंने एक दिन इस सबको तिलांजलि दे दी. यह उन्होंने उस वक्त किया जब वे करियर के शिखर पर थीं. अगर आपको उनका कंसर्ट बुक करना हो, तो बतौर मेहनताना वे आपसे बस एक चेक देने की गुजारिश करती थीं जो किसी भी चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम पर बना हो.
23. सीधा-सादा जीवन
रसिपुरम कृष्णस्वामी नारायणस्वामी ने एक बार द हिंदू अखबार के प्रकाशक और उनके जीवनीकार एन. राम से कहा था, ”हर आदमी खुद को जिस गंभीरता से लेता है, उसे देखकर हैरत होती है.” द हिंदू के लिए नारायण ने अरसे तक साप्ताहिक स्तंभ लिखा. कुछ इसी तरह का रवैया कार्टूनिस्ट और उनके भाई आर.के. लक्ष्मण के कार्टून ‘कॉमन मैन’ में भी झलकता था. नारायण के बहुतेरे किरदार ऐसे हैं, जिन्हें अपने भीतर से वह आंतरिक ऊर्जा, वह शक्ति नहीं मिल पाई, जिसके बूते वे अपना अस्तित्व बचाए रख सकें.
24. हर विसंगति पर पैनी नजर
परिहास वास्तव में अपमान की कला है जो व्यंग्य के रूप में पेश की जाती है. कार्टून इशारों में कही जाने वाली कला है. यह या तो अपने लक्ष्य पर सीधे तौर तीखा हमला करता है या विषय की कमजोरियों या खामियों को मान्य तरीके से उजागर करता है, जो दर्शकों को गुदगुदाता है. रसिपुरम कृष्णस्वामी लक्ष्मण उर्फ आर.के. लक्ष्मण इस दूसरी कला में माहिर एक विलक्षण कार्टूनिस्ट थे. 1951 में कार्टून बनाना शुरू करने से लेकर आधी सदी से अधिक समय तक वे भारत के बदलाव को दर्ज करते रहे. उनका एक मूल सिद्धांत था, ”मेरी स्केचपेन कोई तलवार नहीं है. यह मेरी दोस्त है.” उनका अस्त-व्यस्त मूंछों वाला जाना-पहचाना आम आदमी जर्जर सदरी तथा फटी-पुरानी धोती पहने और हाथ में बंद छाता पकड़े हुए हर भारतीय का अक्स बन गया था.
25. स्टार शिक्षक
इब्राहिम अल्काजी ने हमारी विरासत के तमाम धागों को, जिनमें एक नाट्य शास्त्र भी है, अंतरराष्ट्रीय सूत्रों और मंचन के मानकों के साथ मिलाकर आधुनिक भारतीय रंगमंच का ताना-बाना बुना. उन्होंने संगीत, शानदार सेट और नए-नवेले प्रकाश संयोजन को इस कदर आपस में गूंथा कि शो के बहुत वक्त बाद भी दर्शकों पर उसकी अमिट छाप बनी रहती थी. लंदन की मशहूर रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आट्र्स में उनकी पढ़ाई ने शायद उन्हें अंतरराष्ट्रीय नजरिया दिया. अल्काजी जापानी क्लासिकल थिएटर की तर्ज पर भी आसानी से नाटक रच सके, जैसा कि उन्होंने मौलियर के नाटक में किया था. वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं; वे पेंटर हैं, वे संगीत के साथ-साथ डिजाइन की बारीकियों के उस्ताद हैं और मुकम्मल फोटोग्राफर भी हैं.26. दुनिया की अंतरात्मा का रखवाला
इनसानी तरक्की और विकास को देखने के हमारे तरीके पर अमत्र्य सेन ने गहरा असर डाला है. वे विकास की इबारत इस तरह गढ़ते हैं कि यह लोगों की पहले से हासिल असल क्षमताओं और आजादियों को बढ़ाने की प्रक्रिया है. इतने संकरे नजरिए से नहीं कि यह महज आमदनी बढ़ाने की प्रक्रिया है. आजादियां केवल लोगों की आमदनियों पर ही निर्भर नहीं करतीं. वे कई दूसरी चीजों—मसलन, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्थाओं तथा राजनैतिक और नागरिक अधिकारों—से भी तय होती हैं. इस बात को उन्होंने इस तरह लिखा है, ”रहन-सहन के स्तर का मूल्य रहन-सहन में निहित है, इस बात पर नहीं कि आपके पास कितनी वस्तुएं हैं, जिनकी प्रासंगिकता मामूली है और घटती-बढ़ती रहती है.”