भांग की खेती को मान्यता देने के आग्रह को लेकर दायर याचिका में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने इस मामले में प्रधान सचिव वन, प्रधान सचिव स्वास्थ्य को प्रतिवादी बनाते सरकार को भांग के सदुपयोग वाले पहलू पर अपना पक्ष रखने को कहा है। न्यायालय ने कहा, हालांकि कार्यपालिका मादक पदार्थ निरोधक अधिनियम के प्रावधानों के पालन को तत्पर है, लेकिन दवाई के लिए उपयोग की दृष्टि से इसकी खेती बेरोजगारी की समस्या को दूर सकती है। इसके पौधों को जलाने से उत्पन्न होने वाले पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को भी खत्म किया जा सकता है।
न्यायालय ने कहा, जनहित के दृष्टिगत यह जरूरी हो जाता है कि इस पदार्थ का दवाइयों के लिए प्रयोग किया जाए। न्यायालय ने कहा कि यह पदार्थ असाध्य रोगों जैसे कैंसर और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। केंद्र सरकार इस बाबत पॉलिसी बनाने के लिए प्रयासरत है। इसे नेशनल फाइबर पॉलिसी 2010 के अंतर्गत लाया जा सकता है।
प्रार्थी की ओर से न्यायालय को बताया गया कि इन पदार्थों पर किए गए अनुसंधान के बाद इसे मेडिसिन के तौर पर उपयोग में लाया जाने लगा है। मामले पर सुनवाई 12 मार्च को निर्धारित की गई है। हाईकोर्ट के अधिवक्ता देशेंद्र खन्ना ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर इन पदार्थों की खेती पर लगाई गई रोक को हटाने के लिए याचिका दाखिल की है।
इसके अलावा प्रार्थी ने इन पदार्थों को उद्योगों तथा वैज्ञानिक अनुसंधान में उपयोग में लाने के लिए राज्य सरकार की ओर से दिशा निर्देश बनाने संबंधी आदेश देने का आग्रह किया है। प्रार्थी का कहना है कि इन मादक पदार्थों का इस्तेमाल ड्रग माफिया की ओर से किसानों से एकत्रित कर तस्करी के लिए किया जाता है। इन पदार्थों के सदुपयोग भी किया जा सकता है। इससे अवैध तरीके से हो रहे इस अवैध कारोबार पर भी रोक लगेगी।