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राम मंदिर: सीएम योगी का बयान पर बोले आजम खान, ऐसे लोगों को जेल में होना चाहिए

ऑय 1 न्यूज़ 28 जनवरी 2019 (रिंकी कचारी) एसपी नेता आजम खान ने सीएम योगी को जेल में डालने वाला ये बयान यूपी के सीतापुर में दिया. दरअसल सीएम योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर को लेकर कहा था कि राम मंदिर मसले पर लोगों का धैर्य समाप्त हो रहा है और सुप्रीम कोर्ट इस विवाद पर जल्द आदेश देने में असमर्थ है, इसलिए इस मुद्दे को हमारे हवाले कर देना चाहिए.

लखनऊ: सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा राम मंदिर पर दिए बयान को लेकर एसपी नेता आजम खान ने उनपर निशाना साधा है. आजम खान ने कहा कि ऐसे लोगों को तो जेल में होना चाहिए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से योगी को जेल भेजने की मांग की है. दरअसल सीएम योगी ने 24 घंटे के भीतर अयोध्या विवाद का निपटारा करने का दावा किया है. उन्होंने कहा था कि राम मंदिर मसले पर लोगों का धैर्य समाप्त हो रहा है और सुप्रीम कोर्ट इस विवाद पर जल्द आदेश देने में असमर्थ है. योगी आदित्यनाथ ने कहा, “इसे हमारे हवाले कर देना चाहिए और 24 घंटे के भीतर इसका समाधान हो जाएगा.

आदित्यनाथ ने कहा है कि मैं अब भी अदालत से विवाद का निपटारा जल्द करने की अपील करूंगा. इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने 30 सितंबर 2010 को भूमि बंटवारे के मसले पर आदेश नहीं दिया, बल्कि यह भी स्वीकार किया कि बाबरी ढांचा हिंदू मंदिर या स्मारक को नष्ट करके खड़ा किया गया था. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने हाई कोर्ट के आदेश पर खुदाई की और अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि बाबरी के ढांचे का निर्माण हिंदू मंदिर या स्मारक को नष्ट करके किया गया था.

उन्होंने कहा था कि टाइटल का विवाद अनावश्यक रूप से जोड़कर अयोध्या विवाद को लंबा खींचा जा रहा है. हम सुप्रीम कोर्ट से लाखों लोगों की संतुष्टि के लिए जल्द से जल्द न्याय देने की अपील करते हैं, ताकि यह जनास्था का प्रतीक बन सके. अनावश्यक विलंब होने से संस्थानों से लोगों का भरोसा उठ जाएगा.

उन्होंने कहा कि मैं कहना चाहता हूं कि अदालत को अपना फैसला शीघ्र देना चाहिए. अगर वह ऐसा करने में असमर्थ हैं तो वह मसला हमें सौंप दें. हम राम जन्मभूमि विवाद का समाधान 24 घंटे के भीतर कर देंगे. हम 25 घंटे नहीं लेंगे.

उनसे जब पूछा गया कि केंद्र सरकार ने अध्यादेश क्यों नहीं लाया तो उन्होंने कहा कि मामला विचाराधीन था. उन्होंने कहा, “संसद में विचाराधीन मसलों पर बहस नहीं हो सकती है. हम इसे अदालत पर छोड़ रहे हैं. अगर अदालत ने 1994 में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे के आधार पर न्याय दिया होता तो देश में अच्छा संदेश जाता.”

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