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गुजरात-झारखंड के बाद यूपी में भी 10% सवर्ण आरक्षण लागू, योगी सरकार ने दी मंजूरी

ऑय 1 न्यूज़ 18 जनवरी 2018 (रिंकी कचारी) उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण के लिए अध्यादेश से संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण के लिए अध्यादेश से संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इसी के साथ यूपी में यह आरक्षण व्यवस्था 14 जनवरी से लागू हो गई है. उत्तर प्रदेश गरीब सवर्णों को आरक्षण देने वाले इस व्यवस्था को लागू करने वाला तीसरा राज्य बन गया है. योगी सरकार से पहले गुजरात और झारखंड सरकार आरक्षण कानून को मंजूरी दे चुकी हैं.

बीते शनिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सामान्य वर्ग के गरीबों को नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण से संबंधित संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम 2019 को मंजूरी दे दी थी. जिसके बाद अब देश में सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो गया था. आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाला यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन कर सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण का प्रावधान करता है.

इसके तहत 8 लाख रुपये तक की वार्षिक आमदनी वालों को आरक्षण का लाभ प्राप्त होगा. एक तरफ बीजेपी शासित गुजरात, झारखंड और उत्तर प्रदेश ने इस आरक्षण व्यवस्था को अपने प्रदेश में लागू करने का फैसला किया है तो वहीं, कई विपक्षी दल इसका मुखर रूप से विरोध कर रहे हैं.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस व्यवस्था को लागू करने से इनकार कर दिया है. ममता के अलावा डीएमके प्रमुख ने एमके स्टालिन ने भी गरीबी आधारित आरक्षण का पूरजोर विरोध किया है. यही नहीं, डीएमके ने इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. डीएमके द्वारा दायर की गई याचिका में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए केंद्र द्वारा लागू किए गए आरक्षण व्यवस्था को संविधान के खिलाफ और एससी-एसटी के खिलाफ बताया है.

इसके लिए डीएमके ने इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए कहा है कि उस समय सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि आर्थिक मानदंड संविधान के तहत आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता. याचिका के मुताबिक, ‘संविधान संशोधन पूर्ण रूप से संवैधानिक मानक का उल्लंघन करता है. इंदिरा साहनी मामले में 9 जजों द्वारा कहा गया था कि आर्थिक मानदंड आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है. ऐसा संशोधन दोषपूर्ण है और इसे अवैध ठहराया जाना चाहिए क्योंकि इसमें फैसले का खंडन किया गया है.’

हालांकि, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि अगड़ी जातियों (सामान्य वर्ग में आने वाले लोगों) को आर्थिक आधार पर नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण की संवैधानिक वैधता वाली इस व्यवस्था से सामान्य वर्ग के पिछड़े लोगों को मदद मिलेगी और उनका जीवन स्तर सुधरेगा. साथ ही उन्होंने इस व्यवस्था का विरोध कर रहीं पार्टियों और नेताओं पर हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस ने ऊंची जातियों के गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण से संबंधित विधेयक का समर्थन मन से नहीं कर रही है.

जेटली ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा, ‘गरीबी आधारित आरक्षण के एजेंडा को मजबूत करने का प्रधानमंत्री का फैसला सामान्य श्रेणी के गरीबों के लिए अबतक का सबसे बड़ा कदम है और गरीबी को हटाने की जरूरत है. प्रमुख विपक्षी दल खाली मुंह से इसका समर्थन कर रही है, जबकि वास्तव में वह इसमें पेंच पैदा करने की कोशिश कर रही है.’

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