एक तरफ सरकार लोगों से समय पर टैक्स चुकाने और देश निर्माण में भागीदार होने की गुजारिश करती है, तो दूसरी तरफ करोड़ों-अरबों की हैसियत वाली कंपनियां टैक्स बचाने के लिए बचकाने उदाहरण देती हैं. दवा कंपनियों से जुड़ा हुआ ऐसा ही एक मामला सामने आया है.