मेडिकल कॉलेज में लिखी जा रही महंगी दवाइयों के कारण इलाज करना मुश्किल हो गया है।
सवाल यह है कि चिकित्सक जेनेरिक दवाइयां क्यों नहीं लिख रहे। जबकि, मरीज को पहले जेनेरिक दवाएं ही लिखी जानी चाहिए। यदि यह दवाएं बीमारी पर असर न दिखाए तो टेस्ट आदि करने के बाद दूसरी दवाइयां लिख सकता है।
वीरवार को एलर्जी (फंगल इंफेक्शन) से पीड़ित एक मरीज मेडिकल कॉलेज नाहन में उपचार के लिए पहुंचा। डॉक्टर ने बिना टेस्ट के ही मरीज को दवाएं लिख दीं। मरीज को लगा कि यह दवाएं मेडिकल कॉलेज की डिस्पेंसरी पर भी मिल सकती हैं लेकिन डिस्पेंसरी में एक भी दवा नहीं मिली। इसके बाद मरीज केमिस्ट की दुकान पर पहुंचा। जब केमिस्ट ने दवाओं का बिल बनाया तो इसकी कुल राशि 3118 रुपये बनी। फिर क्या, इतनी महंगी दवाएं देखकर मरीज के भी होश फाख्ता हो गए।
मरीज ने बिल तो ले लिया मगर, दवा एक भी नहीं ली। स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय जगमोहन रमौल के बेटे एवं सुधीर रमौल ने बताया कि पहले ही पीजीआई चंडीगढ़ से उनकी बीमारी का इलाज चल रहा है। पीजीआई से लिखी 300 से 350 रुपये की दवा खाकर वह काफी समय तक वह ठीक रहे लेकिन कुछ दिन से उन्हें दोबारा एलर्जी की शिकायत हुई। लिहाजा, वह मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर के पास पहुंचे जहां से उन्हें जेनेरिक दवाएं नहीं लिखी गई।
‘अमर उजाला’ ने जब इसकी पड़ताल की तो पाया कि खांसी की एक मरीज महिला को भी एक डॉक्टर ने बिना टेस्ट व अन्य जांच के महंगे एंटीबायटिक लिख दिए। वहीं आंखों के एक मरीज को भी डॉक्टर ने एक हजार से ऊपर की दवाएं लिख दीं।
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मोटी कमीशन के भी आरोप
बाजार से महंगी दवाएं लिखे जाने के आरोपों के बाद डॉक्टरों के मोटे कमीशन की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। मरीज डॉक्टरों पर कमीशन के आरोप जड़ रहे हैं। कुछ समय पहले भी डॉक्टरों पर कमीशन के खेल के संगीन आरोप लगे थे।
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मामले की जांच की जाएगी
यदि कोई डॉक्टर बाजार की दवाएं लिखता है तो शिकायत की जा सकती है। मामला गंभीर है। लिहाजा, इस मामले की जांच की जाएगी। इस मामले में उच्चाधिकारियों को भी रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
– डॉ. केके पराशर, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट, मेडिकल कॉलेज नाहन।