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सिरमौर डीडीसी सदस्या शकुंतला चौहान एवं उपाध्यक्षा परीक्षा चौहान ने कहा : महिला को दस बातें हमेशा याद रखनी चाहिए

ब्यूरो रिपोर्ट :9 मार्च 2018

(8 मार्च) को समूचा विश् अंतरराष्ट्रीय महिला  दिवस मना रहे है मगर  महिला ओं में कानून के प्रति सजगता की कमी  के चलते  वे जानेअनजाने हिंसा की शिकार होती रहती हैं। यह बात जिला  सिरमौर डीडीसी सदस्या शकुंतला चौहान एवं उपाध्यक्षा परीक्षा चौहान  ने एक वार्ता  के दौरान  कही उऩ्होंने कहा  कि महिला ओं को अपने अधिकारों की जान कारी  होना आवश्यक हो गया है। उन्होंने  अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि हर  महिला  को दस बातें  हमेशा याद  रखनी चाहिए।

निजता का अधिकार:

एक महिला जिले के किसी भी थान  में अपना मामला दर्ज करा सकती है।  किसी भी महिला की तलाशी सिर्फ महिला अधिकारी ही ले सकती है और गिरफ्तारी में भी लेडी अफसर का होना कानन अनिवार्य है। महिला को सूर्योदय से पहले और सूर्यास् के बाद, गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

बलात्कार पीड़ित महिला का बयान  मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में बिना किसी अन् की उपस्थिति में लिया जाएगा। किसी महिला से पूछताछपुलिस थाने की बजाय उसके घर पर ही  किए जाने का प्रावधान  है।

छेड़छाड़ के खिलाफ प्रावधान:

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 294 509 के तहत किसी भी महिला को लेकर कोई अभद्र इशारा, हरकत करना कानूनन अपराध है। अगर ऐसे हालात में कोई महिला पुलिस स्टेशन जाती है तो उसे उसके बयानों के लिए ताना नहीं मारा जा सकता। अगर पुलिस कार्रवाई में हीलाहवाली करती है तो महिला के पास अदालत या राष्ट्रीय महिला आयोग के पास अपील का अधिकार है।

समान वेतन का अधिकार

भारत सरकार की ओर से सभी कार्यों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय की गई है। अगर आपके कार्यालय में लैंगिक आधार पर वेतन में असमानता है तो आप श्रम आयुक् या महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से सीधे शिकायत कर सकती हैं।
आपित्तजनक दुष्प्रचार:

इंटरनेट के दौर में इस कानून की जानकारी होना महिलाओं के लिए बेहद जरूरी है। महिला का अभद्र प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति या संगठन का किसी भी महिला के प्रति आपत्तिजनक जानकारी प्रकाशित करना (ऑनलाइन या ऑफलाइन) गैरकानूनी है। अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया वेबसाइट पर आपको परेशान कर रहा है या आपकी पहचान से छेड़छाड़ कर रहा है तो आप नजदीकी साइबर सेल में मामला दर्ज करा सकती हैं।

मैटर्निटी बेनफिट एक्:

इस कानून के तहत महिलाओं को गर्भावस्था से जुड़े अधिकार दिए गए हैं। किसी संस्था में अपनी डिलीवरी की तारीख से 12 महीने पहले तक में न्यूनतम 80 दिन काम करने वाली महिला को इसका फायदा मिलता है। इसमें मैटर्निटी लीव, नर्सिंग ब्रेक्, मेडिकल भत्ते इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्, 1971 के तहत, बिना स्पष् कारण बताए गर्भपात पर प्रतिबंध है।

कार्यस्थल पर यौन शोषण:

2013 में पास हुए इस कानून के जरिए महिलाओं को कार्यस्थल पर कई अधिकार दिए गए। ऑफिस में यौन शोषण की परिभाषा मेंसेक्सुअल टोन के साथ भाषा का प्रयोग, पुरुष सहयोगी का निजता की सीमा लांघना, जानबूझकर गलत तरीके से छूना इत्यादि शामिल है। सभी निजी सरकारी फर्मों में एंटी सेक्सुअल हैरेसमेंट कमेटी बनाना अनिवार्य है, जिसकी 50 फीसदी सदस् महिलाएं होनी चाहिएं।

मुफ्त सहायता का अधिकार:

बिना किसी वकील के पुलिस थाने जाने पर महिला के बयान में बदलाव संभव है। महिलाओं को यह पता होना चाहिए कि उन्हें कानूनी मदद का अधिकार होता है और उन्हें इसकी मांग करनी चाहिए। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार, बलात्कार की रिपोर्ट आने पर, थाना प्रभारी को दिल्ली की कानूनी सेवा प्राधिकरण को मामले की जानकारी देनी होती है। फिर यह संस्था पीड़िता के लिए वकील का इंतजाम करती है।

 

दहेज निषेध कानून:

इस कानून के जरिए देश में दहेज लेना और देना, दोनों को अपराध बनाया गया। विवाह के समय वरवधू पक्ष की ओर ऐसे किसी भी ऐसे लेनदेन पर जेल की सजा हो सकती है। महिलाओं को स्पष् अधिकार हैं कि वे पुलिस के पास जाकर दहेज मांगे जाने की शिकायत दर्ज करा सकती हैं। कानून के तहत, दोषी को 5 साल या ज्यादा की जेल 15,000 रुपये या दहेज की रकम तक के जुर्माने का प्रावधान है।

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