सिडार ऑयल के दोहन को लेकर हिमाचल सरकार बड़ा फैसला लेने की तैयारी में है। सिडार ऑयल के दोहन को लेकर चल रहे विवाद के बीच वन विभाग दोहन को कानूनी रूप देने की तैयारी कर रहा है। विभाग ने एक प्रस्ताव तैयार किया है।
जयराम मंत्रिमंडल अगर इसे मंजूरी देता है तो तय समय बाद तय क्षेत्र से सिडार ऑयल निकालने के लिए टेंडर प्रक्रिया की जाएगी। इस काम को विभाग के बजाय वन निगम के जरिये कराने पर विचार चल रहा है।
हाल ही में देवदार के पेड़ों से हजारों लीटर सिडार ऑयल निकालने की बात सामने आई थी। अवैध रूप से हो रहे इस दोहन से वन माफिया लाखों रुपये कमा रहा था। सिडार ऑयल का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को दूर करने में किया जाता है।
मामले पर कैबिनेट को लेना है अंतिम फैसला
ऐसे में विभाग अब इस ऑयल को निकालकर उससे आय कमाने पर विचार कर रहा है। विभागीय सूत्रों की मानें तो विभाग ने इसके लिए एक प्रस्ताव भी तैयार किया है।
देवदार, काइल और चीड़ के पेड़ों के तले से निकलने वाला तेल न केवल बेशकीमती है, बल्कि चमड़ी से संबंधित कई बीमारियों को दूर करता है। बेशकीमती होने के बावजूद इसके दोहन पर हिमाचल में पूरी तरह रोक है।
विभिन्न उद्योगों में उत्पादों की फिनिशिंग के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। ऐसे में विभाग खुद या किसी एजेंसी या संस्था को ठेके पर इसके लिए जिम्मेदारी दे सकता है। हालांकि, इस पर अंतिम फैसला कैबिनेट को लेना है।
ठूंठ में ज्यादा निकलता है तेल
सामान्य तौर पर तो पूरे पेड़ से तेल निकलता है, लेकिन इसके ठूंठ में सबसे ज्यादा तेल निकल सकता है। यही कारण है कि वन माफिया जंगलों में पेड़ों से तेल निकालने के अलावा उसे काटकर उसकी जड़ से भी भारी मात्रा में तेल निकाल लेते हैं।
पेड़ कटान से होने वाले इस दोहरे लाभ को खत्म करने के लिए ही विभाग अब खुद तेल दोहन करने पर विचार कर रहा है। खड़े पेड़ों से सिडार ऑयल निकालने के अलावा कटे पेड़ों के ठूंठ को निकाला जाएगा। इसके बाद उन्हें तेल निकालने के लिए फैक्ट्रियों में भेजा जाएगा।
ठूंठ निकलने के बाद खाली जगह पर नए सिरे से पौधरोपण कर जंगल क्षेत्र को भी बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। निकलने वाले तेल को जहां से देश के अंदर से लेकर सिडार ऑयल बाहरी देशों तक को सप्लाई किया जा सकता है।