Tuesday, October 3, 2023
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मुख्य मंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार के 1958 में आठवी कक्षा के छात्र को दिल्ली में कहे ये शब्द “ विद्या नन्द हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का भविष्य है “|

ब्यूरो रिपोर्ट :20 जनवरी 2018

राजगढ़

हिमाचल निर्माता और प्रदेश के मुख्य मंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार के 1958 में आठवी कक्षा के छात्र को राष्ट्रिय संगीत सम्मेलन आज उस समय का वह बालक न केवल खरा उतरा बल्कि हिमाचल को लोक संस्कृति में अलग पहचान भी दिला रहा है | जी हम बात कर रहे हे जाने माने लोक संस्कृति के विद्वान विद्या नन्द सरेक की | जिन्हें गत दिवस भारत के महामहीम राष्ट्र पति राम नाथ कोविंद द्वारा राष्ट्र पति भवन में राष्ट्रीय नाटक अकादमी पुरुस्कार 2016 प्रदान किया |

भारत के संस्कृति मंत्रालय की और से हर वर्ष प्रदान किये जाने वाले इस पुरुस्कार में एक लाख रूपये नगद, ताम्र पत्र ,अंग वस्त्र प्रदान किया गया |  जिला सिरमौर की राजगढ़ तहसील के दूरदराज क्षेत्र के देवठी मझगावं में 1941 में जन्मे बेहद गरीबी में पले बड़े श्री सरेक ने मात्र चार वर्ष की आयु में ही मंचीय प्रस्तुती दे डाली थी |  माता पिता से विरासत में मिले गीत संगीत को उन्होंने न केवल अपने तक सीमित रखा बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणा बन गये है |  कभी करियाला के ग्रामीण मंच से शुरू हुआ ये सफर आल इण्डिया रेडियो के बी हाई कलाकार होता हुआ विदेश तक जा पहुंचा |

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की और से कई परियोजनाओ में कार्य कर उन्हें अमली जामा पहुचाया | क्षेत्र की अपने जमाने की जानी मानी नृतयांगना स्वर्गीय मुन्नी देवी और पिता गणेशा राम के सुपुत ने बाल्य काल से लेकर आज तक लोक संस्कृति को  अपना जीवन ही समर्पित कर डाला | लोक विधाओ को न केवल लिपि बद्ध किया बल्कि लुप्त हो चुकी नाट्य विधाओं को फिर से जिन्दा कर दिया | “ उनके दल के सीटू नृत्य से तो विदेशो तक में आपके मंचीय प्रदर्शनों से खूब तालियाँ बटोरी | इसके इलावा भडालटू नृत्य , करियाला की लुप्त हुई विधाओं , ठोडा, आदि को भी मंचीय विधा में तैयार किया |  क्षेत्र में इन्सान के जन्म से लेकर मृत्यु तक बजाई जाने वाली “तालो” को फिर से जिन्दा किया जो अब गायब ही हो गई थी | चुडे श्वर  महीमा को संगीत बद्ध भी इन्होने ही किया | युवाओं के लिए लोक संस्कृति पर चुडेश्वर लोक संस्कृति कला मंडल के बैनर तले इन विधाओ के प्रदर्श शिविर भी आयोजित किये |

1976 में प्राथमिक शिक्षक की नोकरी छोड़ दी तो उसके उपरांत सिर्फ और सिर्फ समाज सेवा और लोक संस्कृति पर ही काम किय| डॉ यशवंत सिंह परमार और वैद्य सूरत सिंह के संरक्ष्ण में पहाड़ी कलाकार संघ के मुख्य कलाकार और निर्देशन का काम  किया तो अपने गावं में सर्वोदय नाटी दल देवठी मझगावं की स्थापना की | जिसमे स्थानीय कलाकारों को जोड़ा और लोक संस्कृति पर कम किया |इससे पूर्व भी विद्या नन्द सरेक को प्रदेश और अन्य कई संस्थाओं से परुस्कार मिल चुके है | और अब  ये सफर लोक संस्कृति के भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सबसे बड़े परुस्कार तक जा पहुंचा हे | इस उपलब्धी पर पूरा क्षेत्र गर्व महसूस कर रहा है |

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