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फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग एफओपीएलके मुद्दे पर पत्रकारों के लिए कार्यशाला आयोजित

आई 1 न्यूज़ चंडीगढ़, 14 जुलाई 2021 ( हरप्रीत नागपाल ) फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (एफओपीएल) के मुद्दे पर पत्रकारों के लिए कार्यशाला आयोजित गैर-संचारी रोगों का बोझ कम करने के लिए डिब्बाबंद खाद्य व पेय पदार्थ उद्योगों द्वारा फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (एफओपीएल) नियमों का सख्ती से पालन करवाना ज़रूरी  डॉ. सोनू गोयल लगभग 50 फीसदी शहरी भारतीय मोटे हैं, लगभग 30 फीसदी भारतीयों को उच्च रक्तचाप है, 17 फीसदी पुरुष और 14 फीसदी महिला वयस्क मधुमेह से पीड़ित हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि एफओपीएल के नियमों के पालन से इस बोझ को कम किया जा सकता है

डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (डीसीएम एवं एसपीएच), पीजीआईएमईआर, स्ट्रेटेजिक इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एजुकेशन एंड रिसर्च (एसआईपीएचईआर) तथा ग्लोबल हेल्थ एडवोकेसी इनक्यूबेटर (जीएचएआई) ने फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (एफओपीएल) के महत्वपूर्ण मुद्दे पर पत्रकारों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया। एफओपीएल – जैसा कि नाम से पता चलता है, डिब्बाबंद खाद्य व पेय पदार्थों के लेबल को संदर्भित करता है, जिससे यह प्रदर्शित होता है कि उत्पाद एचएफएसएस यानी उच्च वसा, नमक और चीनी युक्त है। लेबल पर महत्वपूर्ण पोषक तत्वों का भी उल्लेख होना चाहिए। एफओपीएल के पीछे विचार यह है कि पैकेट के लेबल पर सटीक, सरल, स्टेंडर्ड और पूरी जानकारी हो ताकि डिब्बाबंद खाद्य व पेय पदार्थ खरीदते समय खरीदारों को स्वस्थ विकल्प चुनने में आसानी रहे।

डॉ. सोनू गोयल, डीसीएम एंड एसपीएच, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में प्रोफेसर एवं प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर, स्ट्रेंगथनिंग मैनेजमेंट ऑफ हाइपरटेंशन सर्विसेज प्रोजेक्ट (एसएमएचएसपी), ने पत्रकारों की संवेदीकरण कार्यशाला में कहा, ‘गैर-संचारी रोग (एनसीडी) जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि दुनिया भर में बीमारियों और मृत्यु दर का प्रमुख कारण हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, विश्व स्तर पर हर साल 4.1 करोड़ मौतें एनसीडी के कारण होती हैं। खाद्य पदार्थ ताजा तैयार किये हुए हों या पहले से पैक किए हुए, यदि वसा, नमक या चीनी की उच्च मात्रा वाले भोजन (एचएफएसएस) का अधिक सेवन किया जाये तो यह अक्सर मोटापे और गैर-संचारी रोगों के लिए प्रमुख जोखिम कारक होता है।’

एफओपीएल की मांग और प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए, एफओपीएल को प्राथमिकता देने और प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में इसकी व्यापक वकालत और कवरेज सुनिश्चित करने हेतु पत्रकारों के लिए यह कार्यशाला आयोजित की गयी थी। डॉ गोयल ने आग्रह किया कि सरकार को डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुरूप खाद्य पैकेज पर अनिवार्य पोषक तत्वों की घोषणा करनी चाहिए।

डॉ. गोयल ने आगे कहा, ‘पैकेज्ड फूड एंड बेवरेज इंडस्ट्री द्वारा एफओपीएल दिशानिर्देशों का कड़ाई से अनुपालन करवाना ज़रूरी है। लेबल पर अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए किसी सरकारी या वैज्ञानिक संगठन से समर्थन भी शामिल होना चाहिए।’

डॉ. सोनू गोयल के अलावा कई अन्य विशेषज्ञों ने भी इस विषय पर अपने विचार साझा किए।

डॉ संजय भडाडा, प्रोफेसर व हेड, एंडोक्राइनोलॉजी विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ ने ‘मैटाबोलिक विकार और नमक, सोडियम व चीनी के उच्च सेवन से उनका संबंध ‘ के बारे में बात करते हुए कहा, ‘एफओपीएल लेबलिंग उल्लेखनीय रूप से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा और ऐसे ही कई गैर-संचारी रोगों को कम कर सकता है, जिनका संबंध हानिकारक भोजन के सेवन से है। डिब्बबंद खाद्य पदार्थों व पेयों के पैकेट पर सभी उपयुक्त खाद्य सामग्री का उल्लेख किया जाना चाहिए।’

कार्यशाला में विशेषज्ञों ने बताया कि पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के अनुसार, लगभग 17 प्रतिशत भारतीय वयस्क पुरुष आबादी और 14 प्रतिशत से अधिक वयस्क महिला आबादी मधुमेह से पीडि़त है। वर्ष 2014 में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (एनसीडीआईआर) ने अपनी शोध रिपोर्ट में कहा था कि 28 प्रतिशत से अधिक भारतीय उच्च रक्तचाप से पीडि़त हैं और 48 प्रतिशत से अधिक शहरी आबादी तथा 18 प्रतिशत ग्रामीण आबादी अधिक वजन वाली है।

डॉ. हरविंदर कौर, सहायक प्रोफेसर, पीडियाट्रिक्स विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़, ने मीडिया को जंक फूड और बचपन के मोटापे के बीच संबंध से अवगत कराया। उन्होंने कहा, ‘दुनिया भर के आंकड़ों के अनुसार, 5-19 आयु वर्ग के बच्चों और किशोरों में मोटापे का प्रसार 1975 में सिर्फ 4 प्रतिशत था, जो 2016 में नाटकीय रूप से बढक़र 18 प्रतिशत से अधिक हो गया। एफओपीएल की एक उचित प्रणाली पैकेज्ड फूड खरीदते समय माता-पिताओं को निर्णय लेते समय सही विकल्प चुनने में मदद कर सकती है। इससे बचपन के मोटापे जैसी बीमारियों को कम करने में मदद मिलेगी, जो जंक फूड के अत्यधिक सेवन से बढ़ जाता है।’

डॉ. नैन्सी साहनी, वरिष्ठ आहार विशेषज्ञ, डायटेटिक्स विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ ने ‘फूड लेबल पढऩे की प्रासंगिकता और फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग’ के नियम लागू करने पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘लोगों को पैकेज्ड फूड पर पोषण संबंधी जानकारी को समझना चुनौतीपूर्ण लगता है। वर्ष 2019 में, भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने अपने मसौदे के नियमों में पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के लिए वसा चीनी और नमक की मात्रा के आधार पर ट्रैफिक लाइट लेबलिंग का प्रस्ताव रखा था- अस्वस्थ भोजन के लिए लाल रंग, मध्यम स्वस्थ पदार्थों के लिए नारंगी और सेहत के लिए उपयुक्त उत्पादों के लिए हरा रंग। प्राधिकरण ने दिसंबर 2019 में नये लेबलिंग और प्रदर्शन नियमों को अधिसूचित किया, जिससे प्रमुख पैनल पर बड़े अक्षरों में पोषण संबंधी जानकारी प्रस्तुत करना अनिवार्य हो गया।

कार्यशाला के दौरान ‘रेशनल ड्रग लॉजिस्टिक सिस्टम फॉर हाइपरटेंशन कंट्रोल’ नामक एक न्यूजलैटर का अनावरण भी किया गया।

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