आई 1 न्यूज़ 7 जून 2018 ( अमित सेठी ) घुटने के प्रतिस्थापन के 2 दिनों के भीतर अब रोगी चल सकता है 1 किमी तक दिल या गुर्दे विकार वाले बुढ़ापे के मरीजों के लिए घुटनों के प्रतिस्थापन की एक नई और संशोधित तकनीक एक बूम घुटने के जोड़ों के गठिया से पीड़ित मरीजों के लिए घुटने का प्रतिस्थापन एक स्वीकार्य और अत्यधिक सफल प्रक्रिया है। प्रत्यारोपण और सर्जिकल तकनीक में प्रगति ने इस शल्य चिकित्सा प्रक्रिया की स्वीकार्यता में वृद्धि की है और मरीज़ इस सर्जरी को करवाने के लिए उत्साहित हैं। सर्जरी से गुजरने वाले मरीजों के प्रमुख भय में से एक है कि सर्जरी के बाद रिकवरी की प्रक्रिया लम्बी और दर्दनाक होती है। उन्हें बहुत ज्यादा डर सताता है कि उन्हें आराम पर रहना होगा, या लंबे समय तक फिजियोथेरेपी पर रहना होगा जिससे उनकी परिवारिक और सामाजिक या प्रोफेशनल लाइफ डिस्टर्ब हो जाएगी, इस मुख्यकारण से लोग अपनी सर्जरी स्थगित कर देते है। रोग के काल में वृद्धि के साथ ही 80 वर्ष से अधिक उम्र के अधिक से अधिक रोगी इन दिनों घुटनों के प्रतिस्थापन करवाने के इच्छुक हैं ताकि वो एक सक्रिय जीवनशैली जी सके। इन दिनों गठिया रोग से पीड़ित अधिक से अधिक युवा मरीजों को इन दिनों देखा जा सकता हैं, अब हम 40-50 साल के आयु वर्ग के मरीजों को देख रहे हैं जो घुटनों के प्रतिस्थापन के पात्र हैं।
चंडीगढ़ में “एडवांस्ड हिप और नी क्लिनिक” में हमने घुटने के प्रतिस्थापन के लिए एक उन्नत तकनीक तैयार की है जिसके माध्यम से रोगी बिना किसी दर्द के सर्जरी के 2 दिनों के भीतर 1 किमी तक चल सकते हैं। इस तकनीक पर प्रकाश डालते हुए “एडवांस्ड हिप और नी क्लिनिक” के डॉ विनीत शर्मा ने कहा कि इस तकनीक के माध्यम से हम मरीज के अस्पताल में 5 से 7 दिनों के ठहराव को1 से 3 दिनों तक कम करने में सक्षम हैं। यह रोगी को अपने घर पर आराम जैसा मह्सूस कर ठीक होने में सक्षम बनाता है। अस्पताल से जल्दी डिस्चार्ज भी मरीज को हस्पताल में संक्रमण के संपर्क में आने अवसरों को कम करता है। इस तकनीक से जटिलता दर और रोगी के रिएडमिशन रोगी में कोई वृद्धि नहीं होती है बल्कि इसके परिणाम संतुष्टिजनक और उत्कृष्ट हैं। इस तकनीक के साथ औपचारिक फिजियोथेरेपी की आवश्यकता कम है क्योंकि रोगी बिना किसी कठिनाई के अपने स्तर पर ही सरल एक्सरसाइज़ कर सकता है। घुटने के मरीज के लिए घुटनों के प्रतिस्थापन की परंपरागत तकनीक बेहद कठिन थी, इसके तहत उन्हें सप्ताह भर के लिए बिस्तर आराम और महीनों के लिए फिजियोथेरेपी से गुजरना पड़ता था। घुटने के प्रतिस्थापन पर के लिए विचार कर रहे कई मरीजों के लिए यह लंबी अवधि का आराम और फिजियोथेरेपी उनके मन को भटकाने का एक प्रमुख कारण भी है। मरीजों को लंबे समय तक रिकवरी प्रक्रिया और पारिवारिक सामाजिक व् प्रोफेशनल लाइफ के डिस्टर्ब होने का डर सताता रहता था।हमारी संशोधित तकनीक के साथ, रोगी सर्जरी के 5-7 दिनों के भीतर आराम से अपने कार्यालय या कार्यस्थल पर बैठकर काम कर सकते हैं। उन्होंने आगे बताया कि अधिकांश रोगी घुटने के प्रतिस्थापन कि सर्जरी के 6 से 8 घंटे के बाद चल फिरने में सक्षम होते हैं और 5 घंटे के साथ बिना किसी समर्थन के चल फिर सकते हैं। मरीज़ सर्जरी के 2 दिनों के भीतर सीढ़ियां चढ़ और उतर सकता है और जबकि सर्जरी के 5-7 दिनों के भीतर कार भी चला सकते हैं। डॉ विनीत शर्मा ने बताया कि घुटने के प्रतिस्थापन के लिए पारंपरिक शल्य चिकित्सा तकनीक हमारे शरीर, विशेष रूप से दिल, फेफड़ों और गुर्दे पर बहुत अधिक तनाव डालती है जिसके परिणामस्वरूप रोगियों को घुटने के प्रतिस्थापन के बाद महीनों के लिए कमजोरी, भूख की कमी और नींद में परेशानी महसूस होती है। ये प्रभाव घुटने प्रतिस्थापन कि सर्जरी के बाद फ़ंक्शन की रिकवरी में बाधा डाल सकते हैं। हमारी शल्य चिकित्सा तकनीक का एक बड़ा लाभ यह है कि पेरी-ऑपरेटिव अवधि (सर्जरी के दौरान और बाद की समय अवधि) के बाद इतनी अच्छी तरह से देखभाल की जाती है कि शरीर के अन्य हिस्सों पर विशेष रूप से दिल और फेफड़े पर तनाव न पड़े। फेफड़ों के विकार और बुढ़ापे जैसी चिकित्सा समस्याओं वाले रोगी, एंजियोप्लास्टी या कार्डियक चिकित्सा प्रक्रिया को सुरक्षित रूप से पार कर सकते हैं। हमारे पास पिछले 11 वर्षों में घुटनों के प्रतिस्थापन से पहले 300 से ज्यादा मरीजों की एक श्रृंखला है, जिनके पास कार्डियक बाईपास या एंजियोप्लास्टी का इतिहास था और उनकी सर्जरी के बाद हमें उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त हुए हैं डॉ विनीत ने विस्तार से बताया कि रिकवरी प्रक्रिया को इतनी आरामदायक और दर्द रहित बना दिया गया है कि रोगियों को यह भी महसूस नहीं होता कि वे एक बड़ी सर्जरी करवा चुके हैं। इन दिनों काम कर रहे अधिकांश परिवार के सदस्यों के साथ परिवार में व्यवधान और इस तकनीक के साथ काम न्यूनतम है। डॉ विनीत शर्मा ने मीडिया को यह भी बताया कि उनके क्लिनिक में बहुत से मरीज़ विदेश से आते हैं ताकि वे घुटने का प्रतिस्थापन करा सकें और वे सर्जरी के 15 दिनों के भीतर अपने मूल देश वापस यात्रा कर सकें। डॉ विनीत शर्मा ने मीडिया से कहा कि उन्होंने इस तकनीक को वर्ष 2005-2007 के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका में सीखा और उस समय भी हम सर्जरी के बाद शाम को मरीजों को छुट्टी दे देते थे। हम 2007 से भारत में इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं और सर्जरी के बाद मरीज के अस्पताल में रहने के समय 1-3 दिनों तक करने में बहुत सफल रहे हैं। इस तकनीक को रोगी द्वारा स्वीकार् किया जाना बहुत अच्छा है और समय के साथ रोगियों ने अब घर जाने की मांग शुरू कर दी है क्योंकि वे घर के परिचित माहौल में अधिक आरामदायक और आरामदायक मह्सूस करते हैं।