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कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार की तरफ से डी. जी.पी की नियुक्ति संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के जायज़े के लिए आवेदन करने का फैसला

आई 1 न्यूज़ 9 अगस्त 2018 ( अमित सेठी )  सुप्रीम कोर्ट द्वारा 3 जुलाई, 2018 को दिए गए फ़ैसले का पंजाब सरकार ने फिर जायज़ा लेने की प्रार्थना करने का फ़ैसला किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को राज्य सरकार के प्रस्तावों के आधार पर यू पी एस सी की तरफ से गठित पैनल में से पुलिस के डायरैक्टर जनरल के चयन और नियुक्ति करने के निर्देश दिए हैं। सरकार ने महसूस किया है कि सुप्रीम कोर्ट के इन दिशा निर्देशों को लागू करने से राज्य के मामलों में राजनैतिक दख़ल अन्दाज़ी पैदा होगी ।

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने राज्य के एडवोकेट जनरल अतुल नन्दा की राय को स्वीकृत कर लिया है जिसमें कहा गया है कि यह दिश निर्देश राज्य की शक्ति में केंद्र की दखलअन्दाज़ी के बराबर होंगे क्योंकि भारतीय संविधान की व्यवस्थाओं के अनुसार कानून व्यवस्था राज्य का मामला है ।

एक सरकारी प्रवक्ता के अनुसार यह फ़ैसला मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में लिया गया है जिसके अनुसार तारीख़ 3 जुलाई के निर्देशों में संशोधन के लिए सुप्रीम कोर्ट के लिए अजऱ्ी दायर की जायेगी ऐसा पंजाब पुलिस एक्ट -2007 में संशोधन के बाद किया जायेगा जिससे डी.जी.पी की नियुक्ति के लिए राज्य पुलिस कमिशन गठित किया जा सके । सरकार के अनुसार सुझाया गया यह विधि विधान प्रकाश सिंह और अन्य बनाम भारत सरकार और अन्य (2006) 8एस.सी.सी.1 (प्रकाश सिंह केस) के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से की गई सिफारशों की तजऱ् पर होगा ।

प्रकाश सिंह के मामले में अदालत ने अलग -अलग राज्यों को पुलिस सुधारों संबंधी दिशा निर्देश जारी किये थे जिनमें राज्य के डी.जी.पी के चयन संबंधी दिशा निर्देश भी थे । इनमें कहा गया था कि इसका चयन विभाग के 3 सबसे सीनियर अधिकारियों में से किया जाये जो सेवाकाल की अवधि, बहुत बढिय़ा रिकार्ड और पुलिस मामलों से निपटने के लिए विशाल तजुर्बे के आधार पर यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन (यू.पी.एस.सी) द्वारा उस रंैक के लिए पदोन्नती के लिए इम्पैनल्ड किये होंगे ।

3 जुलाई, 2018 के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिए हैं कि वह डी.जी.पी के ओहदे की असामी भरते हुए अपना प्रस्ताव यू.पी.एस.सी को समय से पहले भेजें । यह प्रस्ताव ओहदे पर तैनात अधिकारी की सेवा मुक्ति की तारीख से कम से -कम 3 महीने पहले भेजा जाये । इसके बाद यू.पी.ऐस.सी (2006) 8 एस.सी.सी 1 के निर्णय की हिदायतों अनुसार पैनल तैयार करेगी जिसमें से सूबा अपने डी.जी.पी का चयन करेगा ।

सुप्रीम कोर्ट ने आगे निर्देश दिए हैं कि किसी भी सूबे या केंद्र सरकार की तरफ से तैयार किये किसी कानून /नियम जो इन दिशा निर्देशों के उलट होंगे, उन पर उपरोक्त अनुसार अस्थायी रोक होगी । हालाँकि राज्यों को अगर वह इस निर्णय से संतुष्ट न हों तो उनको उपरोक्त दिशा निर्देशों में संशोधन के लिए अदालत में पहुँच करने की आज़ादी दी गई है ।

मुख्यमंत्री ने इस मामले में ए.जी की राय माँगी थी और उनके पास से सूबा सरकार के आगे बढऩे के लिए सुझाव माँगे थे । इस मामले की इस कारण बहुत ज़्यादा महत्ता है क्योंकि मौजूदा डी.जी.पी सुरेश अरोड़ा 30 सितम्बर, 2018 को सेवामुक्त हो रहे हैं ।

अपनी राय में नन्दा ने कहा कि प्रकाश सिंह के मामले में दिशा निर्देश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ‘‘उस समय इस क्षेत्र में प्रभावी होने संबंधी किसी कानून की अनुपस्थिति की रोशनी’’ में पास किये गए हैं । उन्होंने आगे कहा कि पंजाब सरकार ने पंजाब पुलिस एक्ट -2007 को तारीख़ 5-2-2008 को बनाया था और इस एक्ट की धारा -6 डी.जी.पी के ओहदे के लिए मियाद और चयन से सम्बन्धित है । परन्तु यह यू पी एस सी की तरफ से तैयार किये पैनल से डी.जी.पी के चयन की बात नहीं करता ।

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के जायज़े के लिए प्रार्थना करने के लिए नन्दा की तरफ से तैयार किये आधार के सम्बन्ध में नन्दा ने कहा है कि प्रकाश सिंह केस में दिए गए निर्णय के मुताबिक यह प्रत्यक्ष है कि उसमें दिए गए दिशा निर्देश सिफऱ् तब तक ही हैं जब तक राज्यों की तरफ से कानून बनाए जाते हैं ।

उन्होंने आगे कहा कि पुलिस से सम्बन्धित विषय वस्तु संविधान की 7वीं सूची की लिस्ट 2, ऐंटरी 2 के अधीन आता है और यह सूबा सरकार की विधायिका के घेरे में आता है । पंजाब पुलिस एक्ट -2007 के लागू होने के बाद डी.जी.पी के चयन और नियुक्ति उसकी व्यवस्थाओं के अनुसार होगी और यह तब तक चलेगी जब तक अदालती जायज़े की शक्ति को अमल में लाकर अदालत इस एक्ट या इसकी किसी व्यवस्था को रद्द नहीं कर देती और इन व्यवस्थाओं /एक्ट को ग़ैर संवैधानिक करार नहीं के देती ।

ए.जी ने इस सम्बन्ध में अलग -अलग निर्णयों का जिक्र किया और कहा कि प्रकाश सिंह केस के मामले में दिए गए दिशा निर्देश सिफऱ् तब तक ही कार्यशील हैं जब तक उनको किसी उचित कानून (2007 एक्ट के मामले की तरह) में तबदील नहीं कर दिया जाता ।

उन्होंने आगे कहा कि 3 जुलाई के फ़ैसले के अनुसार प्रांतीय कानून को अस्थायी तौर पर मुलतवी रखा गया है । इसको किसी भी राज्य की सुनवाई के बिना ही पास किया गया है । वास्तव में सुप्रीम कोर्ट ने तथ्यों की अनदेखी की है । उन्होंने कहा कि वास्तव में यह बात ध्यान देने वाली है कि प्रांतीय कानूनी रूप की कानूनन वैधता से निपटने वाली रिट पटीशन 2013 ऐसे ही अदालत में लम्बित पड़ी है जिसकी अभी तक सुनवाई नहीं हुई ।

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को राज्य की विधायिका और कार्यपालिका की शक्ति और संसद की शक्ति का उल्लंघन मानते हुए नन्दा ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश किसी उम्मीदवार को डी.जी.पी नियुक्त करने के सम्बन्ध में राज्य की योग्यता में दख़ल अन्दाजी करते हैं और इसको रोकते हैं खुशी से राज्य में कुशल, प्रभावी जवाबदेही वाली पुलिस सेवाएं यकीनी बनाने के लिए प्रशासकीय और निगरान के तौर पर जि़म्मेदार है ।

नन्दा के अनुसार संविधान ने यू.पी.एस.सी के कामकाज की सीमाएं निर्धारित की हंै जो नियुक्तियाँ, पदोन्नतियां या तबादले जैसे मामलों में उम्मीदवारों के उचित होने के मामले में ‘राय’ दे सकती है । यू.पी.एस.सी के पास उम्मीदवार के योग्य होने को करार देने को निर्धारण करने के लिए शक्ति नहीं है । धारा 32 और 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस्तेमाल करी गई शक्ति समकालीन मामलों में इस्तेमाल करी शक्ति की तरह हैं जबकि इनका प्रयोग संविधान की व्यवस्थाओं की निरंतरता में चाहिए ।

नन्दा ने सुझाव दिया कि पंजाब पुलिस एक्ट -2007 में विभिन्न संशोधन राज्य पुलिस कमिशन के स्थापन के लिए रास्ता सपाट करती हैं ।

 

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