asd
Saturday, July 27, 2024
to day news in chandigarh
Homeहिमाचलकाष्ठकलाकारों का होने लगा सम्मान

काष्ठकलाकारों का होने लगा सम्मान

आई 1 न्यूज़ चैनल

ब्यूरो रिपोर्ट :22 फ़रवरी 2018

राजगढ़

प्रदेश की संस्कृति को जीवित रखने में काष्ठकला का बहुत बड़ा योगदान रहता है मगर अफसोस कि सरकार की उदासीनता के चलते, प्रदेश की काष्ठकला को सहेजने वाले कलाकार अब न के बराबर रह गए हैं। यह कला हमारे सामाजिक जीवन का तब तक खास हिस्सा बनी रही जब तक क्षेत्र में पौराणिक शैली में मंदिर बनते रहे मगर जैसे ही कंकरीट से बने आधुनिक मंदिरों ने प्रवेष किया, न तो काष्ठकला बची और न ही काष्ठकला के बेहतरीन नमूनों से निर्मित हमारे मंदिर ही। मगर आजकल फिर से हिमाचल प्रदेश में उन्हीं लुप्त कला को जीवन मिलने लगा है और काष्ठकलाकारों की कीमत बढ़ने लगी है।

इसी संदर्भ में हिमाचल प्रदेश में करोड़ों रू0 की लागत से पौराणिक शैली में मंदिर निर्मित होने लगे हैं। राजगढ़ क्षेत्र की बात की जाए तो इस समय तीन मंदिरोंमें पूरी तरह काष्ठकला का प्रयोग किया जा रहा है। इन मंदिरों में शिरगुल मंदिर शाया, ख्लोग देवता पिड़ियाधार तथा झांगण गांव का स्थानीय देवता मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों में जिला शिमला एवं जिला मंडी के काष्ठकलाकार दिनरात एक किए हुए हैं जो इन मंदिरों का काठकुणी अथवा पौराणिक शैली मे निर्माण करने में व्यस्त हैं।

कभी इन मंदिरों को निर्मित करने का जिम्मा विशेष जाति के विशेष खानदान के पास हुआ करता था जो अब नाम के खानदान रह गए हैं।, उन्होंने काष्ठशिल्प छोड़, अन्य व्यवसाय ग्रहण कर लिए हैं ताकि वे अपने परिवार का पालन-पोषण कर, आधुनिकता भरा जीवन बिता सके। यदि इस कला को हाशिए पर ले जाने का दोष सरकार पर दे ंतो, कोई दोराय नहीं होगी। सरकार ने कला, भाषा एवं संस्कृति विभाग खोल तो रखा है मगर सरकार उस विभाग को आवश्यक बजट ही आबंटित नहीं करती। बजट के अभाव में वे ऐसे कलाकारों को कैसे प्रोत्साहित करे जो अभी भी गुमनामी के अंधेरे में अपनी काष्ठकला को बचाए हुए हैं।

इस कला को नवजीवन देने के लिए विश्वप्रसिद्ध संगतराश प्रोफेसर एमसी सक्सेना ने अपने स्तर पर प्रयास करते हुए राजगढ़ क्षेत्र के काष्ठशिल्पी शेरजंग चैहान को स्थानीय काष्ठश्ल्पिियों को प्रशिक्षण देने का सुझााव दिया था जिसके फलस्वरूप उन्होंने अपने स्तर पर तीन शिष्यों को काष्ठशिल्प की बारीकियों से अवगत करवाया तथा कई नमूने भी बनवाए। इस गुरू-शिष्य परंपरा को प्रोत्साहन देने के लिए भाषा एवं संस्कृति विभाग ने केंद्र सरकार को उक्त आाशय के प्रोजेक्ट भी भेजे हैं जो न जाने किसी अल्मारी में बंद पड़े, स्वीकृत होने की बाट जोह रहे हैं। चैहान ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि मंदिरों को पारंपरिक शैली में बनवाने पर अनुदान दे तथा काष्ठश्ल्पि को फिर से पहचान दिलाने के लिए गुरू-शिष्य परंपरा को उचित मानदेय के साथ आरंभ करे।

 

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments