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अब अकादमी द्वारा अपनी किताबों की बजाए निजी व्यवसायी प्रकाशकों की पुस्तकों के विमोचन शिमला से लेकर दिल्ली तक करवाए जा रहे हैं,

आई 1न्यूज़ :संदीप कश्यप

शिमला: 1 फरवरी 2018

प्रदेश के समाज-सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्यरत सर्वहितकारी संघ ने हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी की कार्यप्रणाली पर गम्भीर सवाल उठाते हुए नयी सरकार से अनुरोधा किया है कि प्रदेश की अकादमी को साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में गम्भीर और स्तरीय काम करना चाहिए। जबकि पिछले पांच सालों में यह संस्था राजशाही दरबारियों की मनमानी का मंच बनी रही। एक चौकड़ी ही पुरस्कार और प्रचार लाभ लेती रही और अकादमी निष्क्रिय हो गई।

सर्वहितकारी संघ के अधयक्ष गुरुदत शर्मा ने कहा कि ऐसी संस्थाओं को राजीतिक उद्देश्य के लिए संचालित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि भाषा कला साहित्य सम्बंधी शोधा और प्रकाशन का अकादमिक कार्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने अकादमी के ही प्रकाशन अधिाकारी को सचिव का चार्ज दे दिया था, जिनके रहते पिछले पांच सालों में अकादमी की अपनी कोई प्रकाशन नहीं निकल पाई, जबकि इससे पूर्व 2010-12 के तीन वर्षों में अकादमी की 15-20 किताबें प्रकाशित हुई थीं। अब अकादमी द्वारा अपनी किताबों की बजाए निजी व्यवसायी प्रकाशकों की पुस्तकों के विमोचन शिमला से लेकर दिल्ली तक करवाए जा रहे हैं, जबकि ऐसी कोई स्वीकृत योजना अकादमी में नहीं है। उन्होंने इस तरह के कई मनमाने आयोजनों की जांच कराने का भी सरकार से अनुरोधा किया।

सर्वहितकारी संघ की ओर से अकादमी को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रमुख सुझाव प्रस्तुत किए हैं। गुरुदत शर्मा ने कहा कि अकादमी के सचिव की नियमानुसार नियुक्ति होनी चाहिए उसके बाद ही कार्यकारिणी के गठन जैसे नीतिगत निर्णय होने चाहिए वर्ना वही दरबारी मंडली वेश बदलकर फिर अकादमी में जमा हो जाएगी, जिनके आशीर्वाद से वर्तमान प्रकाशन अधिाकारी का चार्ज दिया गया है।

उन्होंने आगे कहा कि भाषा विभाग तथा अकादमी को सरकार में प्रशासनिक स्तर पर र्प्यटन तथा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के साथ जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि इन विभागों के कार्यों की प्रकृति मिलती-जुलती है। इससे सांस्कृतिक र्प्यटन का वातावरण भी बेहतर बन सकता है।

संघ के अधयक्ष ने यह भी कहा कि अकादमी के सदस्य सेवानिवृत प्रशासनिक अधिाकारी नहीं बनाए जाने चाहिए, क्योंकि कई प्रशासक पदेन अकादमी के सदस्य होते ही हैं। अकादमी के सदस्य ऐसे योग्य अकादमिशियन बनाए जाने चाहिए जो भाषा साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत रहते हुए शोधा, संपादन, प्रकाशन तथा समीक्षा जैसी विधाओं के अधिाकारी विद्वान हों। तभी हर विधा में नियोजित और स्तरीय कार्य सम्भव होगा और अकादमी नामक संस्था सार्थक हो सकेगी।

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